bachcha kaise hota hai/जाने बच्चा कैसे पैदा होता है

bachcha kaise hota hai : जब सम्भोग के बाद शुक्राणु योनि में प्रवेश करके अंडे को निषेचित करता हे, तब भ्रूण यानि बच्चे का निर्माण होता हे। और महिलाओं में भ्रूण बनाने से लेकर 9 महीनो में बच्चा पैदा होता हे। दोस्तों सभी जीवो में प्रजनन करके बच्चा पैदा करने का गुण होता हे, में आपको बच्चा कैसे होता हे इसकी जानकारी दूंगा। बच्चा होना एक बहुत ही जटील प्रक्रिया हे जोकि महिलाओं के पेट के निचले हिस्से जिसे बच्चा दानी या गर्भाशय भी कहा जाता हे, में संपन्न होती है। – bachcha kaise hota hai

में आपको प्रेग्नेंट होने से लेकर बच्चा होने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया बताऊंगा। आप इस पोस्ट को ध्यान से पूरा पढ़े। दोस्तों यदि आप भी जानना चाहते हे की बच्चा कैसे पैदा होता है तो आप बिलकुल सही जानकारी पढ़ रहे हे। क्योंकि में आपको बच्चा कैसे होता हे यह बताने  जा रहा हू। बच्चा होने में 9 माह का वक़्त लगता हे लेकिन इन 9 महीनो में कई चरणों में बच्चे का निर्माण होता है। – bachcha kaise hota hai

lumby skin disease kya hai

gora bachcha kaise hota hai

bachcha kaise hota hai/जाने बच्चा कैसे पैदा होता है

जब बच्चा माँ के गर्भ में होता हे तो कई चरणों में बच्चे का निर्माण होता हे। हर माँ की यह जाने की इच्छा होती हे की उसका बच्चा पेट में कब कितना बढ़ा हो रहा हे। तो हम आपको बताएँगे की बच्चे का विकास गर्भ में किस तरह हो रहा हे।

बच्चा कैसे ठहरता हे/गर्भधारण

मासिक धर्म होने के लगभग दो सप्ताह बाद हर माह स्त्री के डिम्बकोश से एक डिम्ब बाहर आता है। यह डिम्बनाल से गुजरता है। इस बीच संभोग हुआ हो तो डिम्ब-नाल में ही कहीं यह पुरुष के शुक्राणु से मिलता है। शुक्राणु और डिम्ब के इस प्रकार मिलने से स्त्री को गर्भ ठहरता है। – bachcha kaise hota hai

अंडे का शुक्राणु से मिलना निषेचन कहलाता हे और एक अंडा निषेचन के बाद भ्रूण का निर्माण करता हे, निषेचन की प्रकिर्या फलोपियन ट्यूब में होती हे।  महिला के मासिक धर्म के समय परिपक्व अंडे फॉलोपियन ट्यूब में योनि मार्ग की तरफ गति करते हे ताकि कोई शुक्राणु उसे निषेचित कर सके। एक अंडा फॉलोपियन ट्यूब में 12 -14 दिनों तक शुक्राणु ले लिए इंतजार करता रहता हे, निषेचन नहीं होने पर अंडो की थैली फट जाती हे और माहवारी ( MC ) के रूप में निकलती हे। – bachcha kaise hota hai

सम्बन्ध  बनाने के बाद लिंग से वीर्य योनि में प्रवेश करता हे और एक बार में 20 लाख शुक्राणु योनि से होते हुए फिलोपियन ट्यूब की तरफ बढ़ते हे अंडे को निषेचित करने के लिए , केवल एक ही शुक्राणु अंडे को निषेचित कर पाता हे। और गर्भ ठहर जाता हे शुक्राणु को अंडे तक पहुँचने में 6 दिन का समय लगता हे। यानि सेक्स से 6 दिनों के बाद गर्भ ठहरता हे। – bachcha kaise hota hai

गर्भ ठहरने के लक्षण

  • मासिक धर्म रूक जाता है
  • सुबह उठने पर जी मिचलाता है। यह लक्षण गर्भ के दूसरे और तीसरे महीने में सामने आता है। और तीन महीने के बाद धीरे-धीरे ठीक हो जाता है
  • स्तन बड़े होने लगते हैं। उनका काला घेरा बढ़ने लगता है
  • बार-बार पेशाब होता है
  • चेहरे, स्तनों और पेट पर काली झाईयां (धब्बे) हो जाती है। (यह लक्षण सब स्त्रियों में नहीं होता)
  • नींद अधिक आती है। सुस्ती महसूस होती है।

पेट में बच्चा कैसे बनता है

जब बच्चा पेट में होता हे तो सभी माँ यह जाने की इच्चुक होती हे की बच्चा कितना बढ़ा हो गया हे। गर्भ अवस्था में शिशु कोनसे महीने में कितना बढ़ा हो चूका हे। यहां बच्चे के विकास की पूरी प्रक्रिया महीने दर महीने बताई जा रही हे। कोनसे अंग कोनसे महीने में बनते है। –

1. पहला महीना : भ्रूण बनने की प्रक्रिया गर्भाशय में पूर्ण होती हे जबकि निषेचन फिलोपियन ट्यूब में होता हे भ्रूण शुरू के 4 हफ्तों में तेजी से बढ़ता हे। भ्रूण के चारो और तरल पदार्थ की थैली बनती हे जो फ्लोट को पोषण देने का काम करती हे।  गर्भ नाल का बनना भी पहले माह में होता हे जिसे प्लेसेंटा ( नाल ) भी कहते हे। इसका एक सिरा गर्भाशय भित्ति से तो दूसरा शिशु की नाभि से जुड़ा रहता हे। भूर्ण का सम्पूर्ण पोषण बाद में प्लेसेंटा से ही होता हे। –

नाल के साथ साथ बच्चे का चेहरा जिसमे आँख के काले घेरे और निचले जबड़े और गाला बनने लगता हे , रुधिर कोशिका का निर्माण और दिल का निर्माण होताहै और ब्लड सर्कुलेशन होना शुरू हो जाता हे इस समय शिशु का दिल एक मिनट में 65 बार धड़कता हे। पहले महीने के अंत तक भ्रूण एक इंच के चौथे हिस्से के बराबर तक बड़ा होता हे –

2. दूसरा महीना : दूसरे महीने में शिशु  के हाथ दिखने लगते हे और आपको महसूस नहीं होगा लेकिन शिशु अब हिलने ढुलने लगा हे। रीढ़ की हड्डी और मस्तिक्ष तथा तंत्रिकातंत्र का निर्माण हो चूका हे। अभी बच्चे का सर बाकि अंग की तुलना में बड़ा हे।  त्वचा और पाचन तंत्र के अंग भी बनाने लगे हे।

3. तीसरा महीना : तीसरे महीने में शिशु के हाथ परे की उँगलियाँ बन जाती हे और कान भी निकल जाते हे। बच्चे के प्रजनन अंग भी बनने लगे हे लेकिन बच्चे का लिंग पहचान में नहीं आएगा अल्ट्रा साउंड से, तीसरे महीने के अंत तक बच्चे के सभी जरुरी अंग बनाने लगे हे और काम भी कर रहे हे। बच्चे का उत्सर्जन तंत्र भी विकसित हो रहा हे। आँख , कान, मुँह सब दिखने लगे हे। इस समय भ्रूण का आकार लगभग 4 इंच और वजन 28 ग्राम के आसपास हे। –

4. चौथा महीना : चौथे महीने में बच्चे की धड़कन को डॉपलर की मदद से सुना जा सकता हे, बच्चा तेजी से हिल सकता हे और आप उसे महसूस कर सकते हे। अब डॉक्टर अल्ट्रा साउंड पर डॉक्टर शिशु के लिंग को देख सकता हे बच्चा लड़का के या लड़की। अब शिशु का आकर 6 इंच के आसपास और वजन लगभग 113 ग्राम का हो चूका हे। –

5. पाँचवा महीना : अब आपके बच्चे के शरीर पर बाल उगना शुरू हो गए हे शरीर पर महीन और सर पर घने बाल उग रहे हे और बच्चे का मोमेंट भी तेज हो चूका हे आप बच्चे का हिलना महसूस कर सकते हे। इस माह में बच्चे का वजन 360 ग्राम से 400 ग्राम के आसपास हे, और लम्बाई 10.5  इंच हो चुकी हे। त्वचा पारदर्शी से गुलाबी रंग में बदल रही हे। कभी कभी किसी माँ को छटे महीने में हलचल महसूस होती हे। –

6. छठा महीना : छटे महीने में बच्चा आवाज सुन सकता हे और साउंड पर प्रतिकिर्या कर सकता हे। माँ की आवाज को पहचान सकता हे और हाथो और पांवो को आवाज पर हिला सकता हे।  चहरे पर भाव भंगिमाएं बना सकता हे , बाँहों को हिला सकता हे। छटे महीने के अंत तक अब शिशु का वजन एक किलो 100 ग्राम के आसपास हो चूका हे। और आकार 15.2 इंच का हो चूका हे। –

7. सातवां महीना : सातवे महीने में शिशु की हाड़ियाँ मजबूत हो गयी हे और शिशु के हाथ की लकीरे बन गयी हे और शिशु अपनी आँखे खोल भी सकता हे और बंद भी कर सकता हे। जब आप अपने पेट पर टोर्च से रौशनी डालेंगे तो शिशु अपना सर हिलायेगा। बाल काफी हद तक गिर चुके हे और बच्चा पूरा नवजात बच्चे जैसा दिख रहा हे। –

8. आँठवा महीना : इस महीने में बच्चे की त्वचा के निचे वसा बनाने लगी हे और त्वचा का रंग भी बदल गया हे। त्वचा की झुरिया भी कम हो गयी हे। सर की हड़िया अभी आपस के जुडी नहीं हे क्योंकि प्रसव के दौरान शिशु के सर की प्लेट एक दूसरे पर चढ़ जाती हे। ताकि प्रसव आसानी से हो। इस समय शिशु का वजन दो से ढाई किलो के आसपास हो सकता हे और आकर 18 इंच तक हो सकता हे। अब शिशु बहुत तेजी से बढ़ेगा एक दिन में 200 ग्राम तक। इस महीने के अंत तक या बिच में बच्चा सर निचे कर लेता हे यानि निचे खिसक गया हे। जोकि नार्मल डिलीवरी के लिए आदर्श स्थति हे। –

9. नौवा महीना : नोवा महीना प्रसव का महीना होता हे इस महीने में बच्चे की डिलीवरी होती हे कभी कभी माँ के बच्चा 9 वे महीने में भी निचे नहीं खिसकता तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।  नोवे महीने में कभी भी प्रसव पीड़ा हो सकती हे। इस लिए माँ को ख्याल रखना चाहिए। –

bachcha kaise hota hai/बच्चा कैसे होता है

महिलाओं में गर्भ ठहरने के 9 माह बाद बच्चे का जन्म होता हे। यह दो प्रकार से होता हे नार्मल यानि वेजिनल (योनी मार्ग से बच्चा होना) दूसरा हे ऑपरेशन से ( पेट में चीरा लगाकर बच्चा होना ) यहां हम दोनों प्रक्रिया के बारे में जानेंगे। प्रसव चुनौतीपूर्ण है और जटिलताएं होती हैं। –

लेकिन महिलाओं के शरीर को जन्म देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। श्रोणि के आकार, हार्मोन, शक्तिशाली मांसपेशियां और अधिक सभी मिलकर आपके बच्चे को दुनिया में लाने में मदद करने के लिए काम करते हैं – बच्चे के जन्म से पहले, दौरान और बाद में। –

योनि प्रसव

इस समय शरीर प्रसव पीड़ा के लिए तैयार होता हे, यह प्रक्रिया कुछ चरणों में पूरी होती हे। प्रसव का सबसे आम तरीका और प्राकृतिक तरीका योनि प्रसव है । इसमें बच्चे का जन्म योनि मार्ग से होता हे। इसमें  तीन चरण शामिल हैं: पहले चरण के दौरान गर्भाशय ग्रीवा का छोटा और खोलना , दूसरे चरण के दौरान प्रसव पीड़ा/लेबर पेन, और तीसरे चरण के दौरान नाल का प्रसव बच्चे का जन्म –

Stage 1 : प्रसव पीड़ा/लेबर पेन

प्रसव पीड़ा वह प्रक्रिया हे, जिसमे प्रसव को प्रेरित किया जाता हे। यह गर्भाशय में हो रहे संकुचन से उत्पन्न होता हे। ग्रीवा के फैलने और सिकुड़ने से प्रसव पीड़ा का अनुभव होता हे, जोकि बहुत दर्द भरा होता हे, यह कुछ मिनटों या घंटो का हो सकता हे, और बच्चे के पैदा होने तक जारी रेहता हे। –

झिल्लियों का टूटना, या ‘पानी का टूटना’
कुछ महिलाओं को प्रसव से पहले बच्चे के टूटने से एम्नियोटिक द्रव की थैली मिलती है, संकुचन शुरू हो जाते हैं और योनि से तरल पदार्थ (या गश) निकलते हैं। इसे झिल्लियों का टूटना, या ‘वाटर ब्रेकिंग’ कहा जाता है।

आपकी प्रसूति टीम को बताएं कि आपका पानी कब टूटा है और तरल पदार्थ के रंग का ध्यान रखें। यह आमतौर पर हल्के पीले रंग का होता है। यदि यह हरा या लाल है, तो अपनी प्रसूति टीम को बताएं क्योंकि इसका मतलब हो सकता है कि बच्चे को समस्या हो रही है। –

प्रसव पीड़ा शुरू करने के लिए कुछ दवाओं का इस्तमाल भी किया जाता है। इस दवा का स्तमाल केवल डॉक्टर ही कर सकते हे। यह दवा कब और किन परिस्तिति में दी जानी चाहिए डॉक्टर की सलाह ले।

stage 2 : बच्चे को धक्का देना और डिलीवरी करना

जब आप बच्चे को योनि से बाहर धकेलते हे तब श्रेणी मेखला (कूल्हे की हड्डी) में फैलाव शुरू होता हे। यह तब और व्यापक हो जाती हे जब रिलैक्सिन हार्मोन का रिसाव होता हे रिलैक्सिन हार्मोन आपकी श्रेणी मेखला को लचीला बना देता हे , ताकि बच्चे का सर आसानी से बाहर आ सके। और इसमें 10 सेंटीमीटर तक फैलाव उस दौरान हो सकता हे। जोकि नार्मल डिलीवरी के लिए आदर्श स्थति हे।

योनि का फैलाव : एक महिला के श्रोणि में बैठे अंगों में गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा और योनि शामिल हैं, जो मांसपेशियों के समूह द्वारा एक साथ आयोजित किए जाते हैं। बच्चे के जन्म के दौरान, आपके गर्भाशय के शीर्ष पर की मांसपेशियों को बच्चे के तल पर दबाया जाता है। –

आपके बच्चे का सिर फिर आपके गर्भाशय ग्रीवा पर दबाव डालता है, जो हार्मोन ऑक्सीटोसिन के विमोचन के साथ (देखें give कैसे हार्मोन आपको जन्म देने में मदद करते हैं ’, नीचे), संकुचन लाता है। आपका गर्भाशय ग्रीवा पतला होना चाहिए ताकि आपका शिशु इससे गुजर सके। –

सिर बाहर निकलना : यह सबसे दर्दनाक चरण है क्योंकि गर्भाशय ग्रीवा अपने पूर्ण रूप से लगभग 10 सेंटीमीटर तक फैल जाती है। दर्दनाक, मजबूत संकुचन 2-3 मिनट के अंतराल पर जारी रहता है, प्रत्येक 60-90 सेकंड तक चलता है। शुरू में बच्चे का सिर बाहर निकलता हे सिर की स्थति माँ के मल छिद्र की और रहती हे और आपका चिकित्सा सहायक उसे सहारा देता हे

शिशु के कंधे बाहर निकलना : सिर के योनि से बाहर आने के बाद कंधे बाहर आने का प्रयत्न करते हे जिसमे आपको जोर से धकेलने के लिए चिकित्सा सलाहकार आपको उचित सलाह देता हे की कब जोर लगाना हे। इस दौरान बच्चा 90 डिग्री तक घूम सकता हे और वर्टिकल स्थति में आजाता हे जोकि कंधे बाहर आने के लिए आदर्श स्थति हे, निचे चित्र में देखे।

stage 3 : प्लेसेंटा की डिलीवरी

अंतिम चरण में शिशु नाल से जुडी थैली बाहर आने का प्रयास करती हे। और महिला को गर्भाशय में अभी भी संकुचन महसूस होता रहता हे जोकि बेबी के जन्म जैसा ही दर्द भरा होता हे और लगातार धकेलता रहता हे जब तक की शिशु नाल का ( प्लेसेंटा ) का पूरा हिस्सा बाहर ना आ जाये। –

डॉक्टर इन अंतिम चरणों में यह सुनिश्चित करता हे , की क्या नाल पूरी बाहर आ गयी हे। फिर हो सकता हे की डॉक्टर आपको प्रसव पीड़ा से राहत की कुछ दवाइंया दे दे।

ऑप्रेशन से बच्चा पैदा होना

ज्यादातर मामलों में योनि प्रसव सबसे आसान और सुरक्षित तरीका हे बच्चा होना का। लेकिन कभी कभी कुछ जटिलताएं होने पर सामान्य या योनि प्रसव होना संभव नहीं हो पाता हे। डॉक्टर की सलाह ही आपके लिए सर्वात्तम होती हे ऐसे मामलो में , गर्भावस्था के दौरान डॉक्टरी जाँच में प्रसव पूर्व आने वाली समस्यांओं को हल करने के लिए डॉक्टर आपको ऑप्रेशन से बच्चा करने की सलाह देता हे। –

देखा जाये तो अब ऑप्रेशन से बच्चे का जन्म होना सामान्य बात हे , और हॉस्पिटल में बढ़ती तकनिकी और सुविधाएँ ऑप्रेशन की जटिलताओं को सरल बना चुकी हे। ऑप्रेशन से बच्चा करने से माँ को प्रसव पीड़ा सहन नहीं करनी होती हे। कुछ असामान्य प्रसव के लक्षण और कारण पर प्रकाश डालते हे। –

असामान्य प्रसव लक्षण और कारण

  • बच्चे के नाल, हाथ या पैर का योनि से बाहर आना।
  • किसी भी समय अत्यधिक रक्तस्राव होना।
  • महिला को झटके आना या दौरा पड़ना।
  • महिला के पेट में तेज दर्द या उल्टी के साथ देखने में परेशानी होना।
  • पानी की थैली फूटने के 12 घंटे बाद भी बच्चे का पैदा न होना चा दर्द का शुरू न होना।
  • प्रसव शुरू होने के 16 से 18 घंटे के बीच बच्चा पैदा न होना।
  • बच्चे का पेट में मल कर देना जिससे कि गहरे हरे रंग का पानी योनि द्वार पर दिखाई देता है।
  • बच्चे का घूमना बन्द हो जाना
  • बच्चे का सिर काफी समय से बाहर दिखाई देने पर भी बच्चा न पैदा होना।
  • बच्चा पैदा होने के एक घंटे बाद भी आवल न आये और चाहे खून न पड़ रहा हो तो भी मदद लेनी चाहिए
  • बच्चे का निचे की और न खिसकना
  • बच्चे के गले के चारोओर नाल लिपटने की स्थति होना।
  • बच्चे का वजन और आकार सामान्य से अधिक होना

बच्चा लड़का होगा या लड़की कैसे निर्धारित होता है

गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का होगा या लड़की, यह तभी निर्धारित किया जाता है जब अंडा और शुक्राणु मिलते हैं। वास्तव में, भ्रूण का लिंग इस बात पर निर्भर करता है कि मादा डिम्ब पुरुष के किस प्रकार शुक्राणु से मिलान करता हे । एक प्रकार की धागा जैसी संरचना पुरुष और महिला दोनों के बीज में पाई जाती है। इस गुण को सूत्र (गुणसूत्र) कहा जाता है। महिला के अंडे में दो XX गुणसूत्र पाए जाते हैं। –

पुरुष के शुक्राणु में एक X और एक Y गुणसूत्र होता है। यदि मादा डिम्ब पुरुष के  X शुक्राणु से एक X गुणसूत्र प्राप्त करता है, तो मादा गुणसूत्र X + पुरुष गुणसूत्र X मिलकर लड़की पैदा करेंगे (XX)

इसलिए, पुरुष बच्चे के लिंग के लिए जिम्मेदार है, न कि महिला के लिए। किसी महिला को दोषी ठहराना या उसके पैदा होने पर उसे बुराई कहना उचित नहीं है।

पति का शुक्राणु    पत्नी का डिम्ब

XY                            XX

XX लड़की             XY लड़का

प्रसव के दौरान हार्मोन्स की भूमिका

आपका शरीर हार्मोन का उत्पादन करता है जो आपके शरीर में बच्चे के जन्म के पहले और बाद में परिवर्तन को ट्रिगर करता है। यहां बताया गया है कि वे आपके बच्चे को पहुंचाने में आपकी मदद कैसे करते हैं।

  • प्रोस्टाग्लैंडिन : बच्चे के जन्म से पहले, प्रोस्टाग्लैंडीन का एक उच्च स्तर गर्भाशय ग्रीवा को खोलने और आपके शरीर को एक अन्य महत्वपूर्ण हार्मोन, ऑक्सीटोसिन के लिए अधिक ग्रहणशील बनाने में मदद करेगा।

 

  • ऑक्सीटोसिन : यह हार्मोन प्रसव के दौरान संकुचन, साथ ही बच्चे के जन्म के बाद नाल को वितरित करने वाले संकुचन का कारण बनता है। स्तनपान के बाद होने वाले जन्म के बाद के ये संकुचन, आपके गर्भाशय को उसके सामान्य आकार में वापस सिकुड़ने में मदद करते हैं। ऑक्सीटोसिन और प्रोलैक्टिन दो मुख्य हार्मोन हैं जो आपके बच्चे के लिए स्तन के दूध का उत्पादन करते हैं। एक माँ और बच्चे के बीच त्वचा से त्वचा का संपर्क इन हार्मोनों को और अधिक रिलीज करने में मदद करता है।

 

  • रिलैक्सिन हार्मोन : रिलैक्सिन जन्म के लिए गर्भाशय ग्रीवा को नरम और लंबा करने में मदद करता है, जबकि आपके पानी को तोड़ने और आपके श्रोणि में स्नायुबंधन को खींचने में मदद करता है ताकि बच्चे को आने से रोका न जा सके।

 

  • बीटा-एंडोर्फिन : बच्चे के जन्म के दौरान, इस प्रकार के एंडोर्फिन दर्द से राहत में मदद करते हैं और आपको हर्षित या उत्साहपूर्ण महसूस कर सकते हैं।

 

  • बेबी ब्लूज़’ : जन्म के बाद, आपके हार्मोन का संतुलन फिर से बदल सकता है, और ऐसा माना जाता है कि कुछ महिलाओं में ‘बेबी ब्लूज़’ होता है। आप अशांत, चिंतित और चिड़चिड़े महसूस कर सकते हैं और आपका मूड ऊपर और नीचे जा सकता है।

प्रसव से जुडी अन्य जानकारी

  • जिस कमरे में प्रसव होना हो उसमें सफाई कर दें।
  • सम्भव हो तो चूने की पुताई भी करें। गोबर का लेप नहीं करना चाहिए।
  • बिस्तर, चटाई, चादर, कम्बल इत्यादि को तेज धूप दिखा दें।
  • यदि संभव हो तो प्रसव चिकित्सा केंद्र पर ही कराये।
  • अस्पताल दूर होतो वाहन का इंतजाम पहले से ही कर ले।
  • प्रसव के बाद उपयोग के लिए सूती धोतियों का पैड बनाकर रखें।
  • मॉं और बच्चे के लिए तेल, साबुन और साफ कपड़े तैयार रखें।
  • प्रसव को जल्दी कराने के लिए दर्द बढ़ाने का टीका न लगायें।
  • मॉं से कहें कि वह दर्द के शुरू में ही या दर्द के बीच में ही बच्चे को बाहर न धकेलें।
  • नवजात शिशु को कंगारू (शरीर से चिपका कर) देखभाल दे, जन्म से कुछ धंटो तक शिशु का तापमान 37 डिग्री रहना चाहिए। बच्चे को गर्म रखे।
  • यदि मॉं को अत्याधिक खून बह रहा हो तो उसे तुरन्त स्वास्थ्य केन्द्र्‌ भेजें।
  • नाल की ठूंठ पर कुछ न लगायें।
  • यदि माँ में खून की कमी हे तो खून की बोतल का इंतजाम पहले से ही कर लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Secure Content